Monday 7 April 2014

गरीब की झोली

बेबस गरीब की झोली, आधी भरी कि आधी पोली,
खून पसीने से तर तर, दुख: भरे आँसुओं से बोझिल
कुछ टुकडे सूखी रोटी के, कुछ नून की ढेली तितर बितर,
एक कोना जिसका छिना हुआ, रिस रहा जहाँ से खाली पन,
है रंग भी जिसका उडा हुआ, फेकी हुई लगती है उतरन,
बाहर से मटमैली सी,और कालिक भी है जमी हुई,
पर उसके अंदर मेहनत की पूरी मेहफिल है सजी हुई,
है नजर किसी की खुशियों पे,रख दौलत कई तिजोरी मे,
वो मस्त चाल मे बहता है,उसकी तो दुनिया झोली मे,
सुबह से लेकर शाम तलक,वो झोली उसकी साथी है,
और रोज रात सर के नीचे,तकिये का काम निभाती है,
बीवी की खुशियाँ है झोली,बच्चों की आशा है झोली,
दिन भर भी कुछ ना पा पाये, तो एक दिलासा है झोली,
जो झाँको उसमे अंदर तो, बेबस का अंतर है झोली,
जो खुल के गर वो बिखर गई,आश्कों का समुंदर है झोली.