Tuesday 17 March 2015

सवेरा


आ लौट चलें उस बचपन मे जब रोज सवेरा होता था,
हर पहर को जब हम जीते थे ,और रात को सोना होता था,
जहाँ एक संतरे की गोली, आँसू को थामे रखती थी,
पतंग,गेंद, गिल्ली डंडा , बल्ले का खिलोना होता था,
आ लौट .....

जब रंग रूप की फिकर ना थी, तपते सूरज के ताप तले,
माँ के लाख बुलने पर जब घर को आना होता था,
कभी दर्द चोट का रहता, था कभी दूध मे हल्दी होती थी,
जब बारिश कि बुँदो के नीचे, कई बार नाहना होता था,
आ लौट.....

हर सुबह सुनहरी होती थी, जब रात को माँ की थपकी थी,
ना भूख कभी लग पाई थी, तैयार निवाल होता था,
हर गलती की माफी थी, और मार से बढकर साजा ना थी,
बस आँख मे आँसू आते थे , जब यारों से बिछुड्ना होता था
आ लौट चलें उस बचपन मे जब रोज सवेरा होता था,
हर पहर को जब हम जीते थे और रात को सोना होता था|
-आरोही

Sunday 8 March 2015

नारी

निर्मल सी धारा हैं नारी,
एक क्रोध की ज्वाला हैं नारी,अड़ जाये तो माँग वो प्राण भी ले,
झुक जाये तो, द्रोपदी है नारी,
कमजोर कहो, नाजुक कह लो, अश्कों का समुन्दर है नारी,
गर शीश उठा वो दहक उठी, काली सा अंतर है नारी,
जो आँख झुका कर सब सह ले, हर चोट जिस्म पर भी लेले,
जो टूट गया वो बाँध दर्द का, विक्राल बवन्डर हैं नारी,
मुस्कान से वो दिल पिघला दे, बातों से स्वर वो बिखरा दे,
गर छेडा उसके तारो को तो नाद शँख का है नारी,
कभी दर्द मे वो मुस्काती है ,
कभी खुशी मे अश्क बहाती है,
आसान नही है सुलझाना अन्जान पहेली है नारी,
एक ह्रदय मे जग को भरे हुये ,रेशम सा बँधन है नारी,
स्वार्थ भरी इस दुनिया में खोई एक आशा है नारी,
प्यार , त्याग और रिश्तों की एक परिभाषा है नारी