एक महा पुरुष मुख तेज़ लिये ,इस तरह अमर हो चला,
हर ओर ग्यान का दीप जला,वो दिव्य ज्योत हो चला,
नये पैमाने जीवन के ,आवाम को अपनी सिखा गये,
जीवन की अंतिम सीढ़ी पर, हर लव्ज़ वो अपना निभा गये,
नन्हे बच्चो की अंजुल मे ,देश सवरता देखा था,
रोड़ो से महल बनाने का ,वो पाठ अनोखा पढ़ा गये,
कलाम को सबकी कलम बना, भारत का नक्शा खींचा है,
हर रंग की स्याही से उन्ने ,देश को अपने सींचा है,
बच्चे हो या बूढ़े हों , हर ह्रदय आज कुछ नम सा है,
खोया है एसा रत्न आज, की "देश" आज कुछ कम सा है,
अश्रुपूर्ण है नभ सारा , धरती का सीना बैठा है,
है स्वर्ग दिवाली मना रहा, और देश हमारा रोता है,
~आरोही