रंजिशे हैं दरमियाँ,सूनी रातों मे अब,
धूँड़े खुद को हँसी,उलझी बातों मे अब,
ज़ख्म क्या कर गया?आँखे नम ही तो है,
तनहा जी लेंगे हम ,ये भरम भी तो है,
मिट रहे सारे लम्हें दीवारों से अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...
आये तू लौटकर,अब ये चाहत नही,
तेरे होने की अब हमको आदत नही,
मरता हूँ हर घड़ी,ये गम ही तो है,
तू ही है ये घुटन,ये रहम ही तो है,
मै भी बस एक हूँ,कई बेदारों मे अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...
धूँड़े खुद को हँसी,उलझी बातों मे अब,
ज़ख्म क्या कर गया?आँखे नम ही तो है,
तनहा जी लेंगे हम ,ये भरम भी तो है,
मिट रहे सारे लम्हें दीवारों से अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...
आये तू लौटकर,अब ये चाहत नही,
तेरे होने की अब हमको आदत नही,
मरता हूँ हर घड़ी,ये गम ही तो है,
तू ही है ये घुटन,ये रहम ही तो है,
मै भी बस एक हूँ,कई बेदारों मे अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...