Tuesday 4 October 2016

क्रोध

उठा के तुमने उंगली,
धीरज तोड़ा है तूफान का,
हर बूंद लहू की चीख रही ,
लो बदला अमर जवान का,
हम हिंसा के अनुयायी नहीं,
पर तुमने शस्त्र उठाया है,
इतिहास के उजले पन्नों पर,
पहले तुमने लहू लगाया है,
अब तान के सीना खड़े रहो,
और देखो घात महान का,
उठा के तुमने उंगली.....

तुम कयी सोते मे मार गये,
ये कायर की पहचान है,
हम घर मे घुस के मारेंगे,
हम हिन्दोस्ताँ की शान है,
जब शेरों को ललकारा है,
अब डर कैसा अंजाम का,
उठा के तुमने उंगली.....

डरपोकों के भाँति तुमने,
पीछे से है वार किया,
भेजे शांति पैगाम कयी,
न खुल के कभी विचार किया,
लो धैर्य हमारा टूट गया,
अब होगा नाश तमाम का,
उठा के तुमने उंगली..।

तुमने अठरा मारे थे,
हम अड़तिस लेकर आये हैं,
लहू को उनके शीश पे मल,
हम उत्तर देकर आये हैं,
अब क्रोध मे है हुंकार रहा,
हर ज़र्रा हिन्दुस्तान का,
उठा के तुमने उंगली...

कशमीर तुम्हारा है कहकर,
कितना संग्राम मचाते हो,
औकात नही बेटा उसकी,
क्यूँ बच्चों सा जिद्दाते हो,
वो मुकुट हमारी माँ का है,
है गर्व हमे सरताज़ का,
उठा के तुमने उंगली...