Tuesday, 26 July 2016

आग

दहक दहक दहक रही सीने मे ये आग जो,
प्रचंड हो,अखन्ड हो,आँधियों के ज़ोर मे,
अलाव बनके यूँ उठे,सभी नज़ारे चौंध हो,
रात मे तमस भरी,और दिव्य श्वेत भोर मे,

संघर्ष की ये आग है,जीत मे विलीन कर,
गिरो,उठो,थमो मगर ये आग ना निराश हो,
ठोकरों से राह की,इसे अबीर लाल कर,
चिंगारियों से घात की,महा विशाल यज्ञ हो,

बुझ गई जो आग तो,तु आज मृत्य हो गया,
माँस और हाड़ का,जिस्म ले भटक रहा,
जला पुनः तु आग को प्राण अपने फूक के,
ना खुद को जीत पायेगा,जो आज यूँ ही खो गया,
जो आज यूँ ही खो गया।

Wednesday, 20 July 2016

मोहताज़

दुनिया जिस्म की मोहताज़ ही तो  है,
ये जीवन महज़ एक साज़ ही तो है,
जब तक सुर है ,सब धुन मे गुम है,
गर टूट गये ये तार कभी,
तो तू महज़ अल्फाज़ ही तो है,

इतने लंबे जीवन का तू सार समझ न पाता है,
आँख मूँद तन से श्वासो का साथ निभाता जाता है,
ठोकर खाता गिरता उठता,पर बंद आँख न खुलती है,
उसकी वाणी पर चलता,जो राह बताता जाता है,
डरता क्यू दाव लगाने से,अपने भीतर हुँकार को सुन,
जो तुझको निर्भर करता है,
ये तेरा अपंग विश्वास ही तो है,

जब मुठ्ठी बाँधे आया था,क्या लाया था? जो खो देगा,
 जो कुछ तेरा कभी था ही नही,
फिर क्या भय है की खो देगा?
उद्देश्य को अपने अटल बना,अपने भीतर की आग बढ़ा,
पीछे से आते शोरों से ,अपनी प्रबल आवाज़ बना,
हर वार से तू प्रमुदित होता,
ये तेरा प्रखर प्रयास ही तो है,

कोइ डोर नही है सक्षम,तेरे कदमो को जो बाँध सके,
धरती पर इतना उठे रहो,कोइ कद तुमको ना लांग सके,
प्रेम सबल और मन निक्षल,सब जीवो का सम्मान रहे,
किसी निर्बल को हाँथ न रुकते हो,और निस्वार्थ सा भाव रहे,
ये जग तेरा आभार करे,
ये तेरा अनंत सम्मान ही तो है,


मन

विक्राल बवंडर अंदर है,
और बाहर चंदन शीत पटल,
कई द्वंदो से मन जूझ रहा,
फिर भी है मुख पर तेज अटल,
सरल शांत मुस्कान से वो,
दुनिया मे खुशियाँ बाँट रहा,
और बिखरी उन मुस्कानो मे,
कुछ अपने हिस्से छाँट रहा,
खाली झोली वापस लाकर,
कई प्रश्नों से घिर जाता है,
खुद खुश रहने की कोशिश मे,
वो रोता है हर रोज़ विफल,
रिसते रिशतों को थामे है,
ले दोनो हाँथों की अंजुल,
हर रिश्ता बस कुछ माँग रहा,
हो रहा शांत सा मन व्याकुल,
सब को पाने की कोशिश मे,
ख्वाबों को अपने रौंध गया,
कतरा कतरा जीवन उसका,
खुद के हाँथों से गया फिसल,