Wednesday, 20 July 2016

मन

विक्राल बवंडर अंदर है,
और बाहर चंदन शीत पटल,
कई द्वंदो से मन जूझ रहा,
फिर भी है मुख पर तेज अटल,
सरल शांत मुस्कान से वो,
दुनिया मे खुशियाँ बाँट रहा,
और बिखरी उन मुस्कानो मे,
कुछ अपने हिस्से छाँट रहा,
खाली झोली वापस लाकर,
कई प्रश्नों से घिर जाता है,
खुद खुश रहने की कोशिश मे,
वो रोता है हर रोज़ विफल,
रिसते रिशतों को थामे है,
ले दोनो हाँथों की अंजुल,
हर रिश्ता बस कुछ माँग रहा,
हो रहा शांत सा मन व्याकुल,
सब को पाने की कोशिश मे,
ख्वाबों को अपने रौंध गया,
कतरा कतरा जीवन उसका,
खुद के हाँथों से गया फिसल,


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