Friday 28 June 2013

हाल

शोक है व्यंग है, कई यहाँ प्रसंग हैं,
प्यार है दुलार है और यहाँ द्वन्द है,
किसलिए है लड रहा मनुष्य एक राज है,
अब क्यों नहीं है शान्ति, जब देश में स्वराज है?
हर किसी के पास अब स्वंय लिखित उसूल है,
कानून की ये पोथियाँ, और ग्रन्थ सब फिजूल है,
रुकेगा कब ये अदमी, खुद के ही विकास से,
बटेंगी कब ये शौहरते, जुटी किसी की आह से,
किसी के दर्द से जुडी, हँसी किसी के होठ पर,
कहकहे है लग रहे, खुली किसी की चोट पर,
क्यो बढ रहा ना हाँथ है मनुष्य का मनुष्य को?
ये कैसा क्रूर शाप है, मनुष्य का मनुष्य को?
धडक रहा वो क्या है जब, ह्र्दय कही बचा नही,
शायद ही कोइ है बचा, जो पाप मे रचा नही,
मुदेंगी जब ये आँख तो, ना मुड के देख पायेगा,
जन्मा था कैसे हाल मे, क्या हाल छोड जायेगा,
अपनी सारी उर्म मे तु ठीक कुछ ना कर सका,
आने वाले कल को तु बहाने क्या बतायेगा,
स्वार्थ से मढा है तु, खुद का तो ख्याल कर,
हो सका ना देश से,तो आत्मा से न्याय कर,
क्या सुकून है तुझे, तडप किसी की देख कर?
क्यों सर्दियाँ मिटा रहा, किसी की राख सेक कर,
इन्सान ने इन्सानियत के मायने बदल दिये,
बिगड गई जो सूरतें, तो आइने बदल दिये,
नाज जिस पे था हमें, मिलेगा अब वो हाल कब??
इस सवाल के तले हो रहे है मौन सब,
कभी खिले थे सब तरफ, वो धुल गये अब रंग है,

शोक है व्यंग है, कई यहाँ प्रसंग हैं……………..

No comments:

Post a Comment