Sunday 25 December 2016

दौर


एक दौर वो भी था जब वो घुट-घुट कर जी लेती थी,
लाज बचाने को घर की अपमान कई सह लेती थी,
मार पती की प्यार समझ कई रात युहीं  कट जाती थी,
सास के तानों को सुनकर माँ याद उसे भी आती थी,
बस चुप रहकर सब दुख सहना माँ उससे बोला करती थी,
उसके एक सम्मान को ले वो सबकुछ झेला करती थी,
सबकी खुशियों को धर्म मान गम के घूँट कई पी लेती थी,
एक दौर वो भी था जब वो घुट-घुट कर जी लेती थी,

नख से लेकर शीश तलक सब गिरवी मे चढ़ जाता था,
नखरों मे बीता वो बचपन तब याद ज़रा हो आता था,
जो तस्वीर बनी थी जीवन की कई टुकड़ो मे हो जाती थी,
सीने पर पोंहची ठेस पे जब वो होंठो को सी जाती थी,
कुछ बोल पड़े न लब उसके डर सा बैठा रहता था,
कुछ सुधरेंगे हालात कभी मन खुद से कहता रहता था,
कुछ आँखों से बह जाते थे कुछ खुद से वो कह लेती थी,
एक दौर वो भी था जब वो घुट-घुट कर जी लेती थी,


Wednesday 14 December 2016

शिक्षा

भारत के किसी कोने में,जब बच्चा सबक उठाता हो,
उच्चारण उन शब्दों का,देश के हर ज़र्रे तक जाता  हो,
एक देश है,एक भाव है,पाठ्य माल भी एक बने,
कयी भाषाओं का देश मेरा,"एक" विद्यालय कहलाता हो,

 मिटा रहे जब भेदभाव,तो शिक्षा को क्यों बाँटा है,
एक वस्त्र मे सजी हो पुस्तक,इस पर क्यों सन्नाटा है,
कोने कोने मे, हर बच्चा ज्ञान एक ही पाता हो,
कयी भाषाओं का देश मेरा,"एक" विद्यालय कहलाता हो,

 जीत की होड़ा होड़ी मे,सब एक मंच पर सक्षम हों,
बँटवारे से शिक्षा के,चाल कभी ना मद्धम हो,
साक्षरता की वींणा से,नाद एक ही आता हो,
कयी भाषाओं का देश मेरा,"एक" विद्यालय कहलाता हो,

Tuesday 4 October 2016

क्रोध

उठा के तुमने उंगली,
धीरज तोड़ा है तूफान का,
हर बूंद लहू की चीख रही ,
लो बदला अमर जवान का,
हम हिंसा के अनुयायी नहीं,
पर तुमने शस्त्र उठाया है,
इतिहास के उजले पन्नों पर,
पहले तुमने लहू लगाया है,
अब तान के सीना खड़े रहो,
और देखो घात महान का,
उठा के तुमने उंगली.....

तुम कयी सोते मे मार गये,
ये कायर की पहचान है,
हम घर मे घुस के मारेंगे,
हम हिन्दोस्ताँ की शान है,
जब शेरों को ललकारा है,
अब डर कैसा अंजाम का,
उठा के तुमने उंगली.....

डरपोकों के भाँति तुमने,
पीछे से है वार किया,
भेजे शांति पैगाम कयी,
न खुल के कभी विचार किया,
लो धैर्य हमारा टूट गया,
अब होगा नाश तमाम का,
उठा के तुमने उंगली..।

तुमने अठरा मारे थे,
हम अड़तिस लेकर आये हैं,
लहू को उनके शीश पे मल,
हम उत्तर देकर आये हैं,
अब क्रोध मे है हुंकार रहा,
हर ज़र्रा हिन्दुस्तान का,
उठा के तुमने उंगली...

कशमीर तुम्हारा है कहकर,
कितना संग्राम मचाते हो,
औकात नही बेटा उसकी,
क्यूँ बच्चों सा जिद्दाते हो,
वो मुकुट हमारी माँ का है,
है गर्व हमे सरताज़ का,
उठा के तुमने उंगली...


Friday 23 September 2016

रंजिश

रंजिशे हैं दरमियाँ,सूनी रातों मे अब,
धूँड़े खुद को हँसी,उलझी बातों मे अब,
ज़ख्म क्या कर गया?आँखे नम ही तो है,
तनहा जी लेंगे हम ,ये भरम भी तो है,
मिट रहे सारे लम्हें दीवारों से अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...

आये तू लौटकर,अब ये चाहत नही,
तेरे होने की अब हमको आदत नही,
मरता हूँ हर घड़ी,ये गम ही तो है,
तू ही है ये घुटन,ये रहम ही तो है,
मै भी बस एक हूँ,कई बेदारों मे अब,
रंजिशें हैं दरमियाँ...


Saturday 3 September 2016

प्रकृति

अपने कमरे की खिड़की से,
बँधे पेड़ ,हवाये बादल देखे,
सहमी सी बारिश गुमराह परिंदे देखे,
इन्सानियत से मजबूर,हताश और चूर-चूर,
खामोश और सबकी सोच से दूर,
कौन समझ पायेगा,इनकी सज़ा हम ही है,
प्रलय और विनाश की वजह हम ही है,
बहती हुइ नदी के जो किनारे बाँध दे,
तनो की मोटाइ को,जो बेखौफ काट दे,
उड़ान को पिंजरे मे कैद कर,
तीर जो प्रकृती पर साध दे,
अपने जन्म के अस्तित्व को दूषित कर,
भगवान को दोष लगाये वो हम ही हैं,
कुछ यहाँ बेवजह नही है, हँसी और आँसू सब सही है,
आज जो रो-रो कर काट रहे, कुछ समय पहले बोया था ,ये बीज वही है,
स्वार्थ की पट्टी से  आँख मूंद कर,
अपने भविष्य के लिये राख बोते, हाँथ हम ही हैं,

Monday 15 August 2016

दर्द

है दर्द का मंज़र आँखों मे,कोई खंजर दिल मे गया उतर,
छोटा सा घरौंदा जीवन का,इन आँखों मे है तितर बितर,

अश्कों मे मेरे ख्वाबों के ,टूटे वो टुकड़े बहते हैं,
क्या हाल हुआ अरमानो का,हम किस्सों मे अब कहते है,

उठने सोने के अंतर मे ,अब सब ठहरा सा लगता है,
खुशियों के इस दरवाज़े पर,अब गम का पहरा लगता है,

घड़ि की टिक टिक कानों से,भीतर तक घर कर जाती है,
उनके आने का रस्ता जब,ये आँखें तकती जाती है,

मुस्कानो की स्याही से ,कुछ उजले पन्ने लिख्खे थे,
दबे हुए उन पन्नो मे,कुछ फूल प्यार के रख्खे थे,

उड़ गये माह दर साल कइ,घोंटे भी गये जज़्बात कइ,
कैसे बताये अब क्या है हाल,मुरझे वो फूल हैं सुर्ख लाल,

वो दर्द मे लिपटे धुंदले पन्ने,अब रोज़ सिरहाने होते हैं,
उनमे ज़िन्दा कुछ यदों को,हम अश्क मे भरकर सोते हैं,


Tuesday 26 July 2016

आग

दहक दहक दहक रही सीने मे ये आग जो,
प्रचंड हो,अखन्ड हो,आँधियों के ज़ोर मे,
अलाव बनके यूँ उठे,सभी नज़ारे चौंध हो,
रात मे तमस भरी,और दिव्य श्वेत भोर मे,

संघर्ष की ये आग है,जीत मे विलीन कर,
गिरो,उठो,थमो मगर ये आग ना निराश हो,
ठोकरों से राह की,इसे अबीर लाल कर,
चिंगारियों से घात की,महा विशाल यज्ञ हो,

बुझ गई जो आग तो,तु आज मृत्य हो गया,
माँस और हाड़ का,जिस्म ले भटक रहा,
जला पुनः तु आग को प्राण अपने फूक के,
ना खुद को जीत पायेगा,जो आज यूँ ही खो गया,
जो आज यूँ ही खो गया।

Wednesday 20 July 2016

मोहताज़

दुनिया जिस्म की मोहताज़ ही तो  है,
ये जीवन महज़ एक साज़ ही तो है,
जब तक सुर है ,सब धुन मे गुम है,
गर टूट गये ये तार कभी,
तो तू महज़ अल्फाज़ ही तो है,

इतने लंबे जीवन का तू सार समझ न पाता है,
आँख मूँद तन से श्वासो का साथ निभाता जाता है,
ठोकर खाता गिरता उठता,पर बंद आँख न खुलती है,
उसकी वाणी पर चलता,जो राह बताता जाता है,
डरता क्यू दाव लगाने से,अपने भीतर हुँकार को सुन,
जो तुझको निर्भर करता है,
ये तेरा अपंग विश्वास ही तो है,

जब मुठ्ठी बाँधे आया था,क्या लाया था? जो खो देगा,
 जो कुछ तेरा कभी था ही नही,
फिर क्या भय है की खो देगा?
उद्देश्य को अपने अटल बना,अपने भीतर की आग बढ़ा,
पीछे से आते शोरों से ,अपनी प्रबल आवाज़ बना,
हर वार से तू प्रमुदित होता,
ये तेरा प्रखर प्रयास ही तो है,

कोइ डोर नही है सक्षम,तेरे कदमो को जो बाँध सके,
धरती पर इतना उठे रहो,कोइ कद तुमको ना लांग सके,
प्रेम सबल और मन निक्षल,सब जीवो का सम्मान रहे,
किसी निर्बल को हाँथ न रुकते हो,और निस्वार्थ सा भाव रहे,
ये जग तेरा आभार करे,
ये तेरा अनंत सम्मान ही तो है,


मन

विक्राल बवंडर अंदर है,
और बाहर चंदन शीत पटल,
कई द्वंदो से मन जूझ रहा,
फिर भी है मुख पर तेज अटल,
सरल शांत मुस्कान से वो,
दुनिया मे खुशियाँ बाँट रहा,
और बिखरी उन मुस्कानो मे,
कुछ अपने हिस्से छाँट रहा,
खाली झोली वापस लाकर,
कई प्रश्नों से घिर जाता है,
खुद खुश रहने की कोशिश मे,
वो रोता है हर रोज़ विफल,
रिसते रिशतों को थामे है,
ले दोनो हाँथों की अंजुल,
हर रिश्ता बस कुछ माँग रहा,
हो रहा शांत सा मन व्याकुल,
सब को पाने की कोशिश मे,
ख्वाबों को अपने रौंध गया,
कतरा कतरा जीवन उसका,
खुद के हाँथों से गया फिसल,


Monday 4 January 2016

Song-dosti

chota sa ashiyana college tha hamara
ham the waha k panchi mushkil hai bhool pana
masti ki fizaye,alhad si wo adaye
hasta khilkhilata azaad sa zamana
chota sa ashiyana college tha hamara..

dosto ki toli canteen ki wo chai,
chedkhaniyo ki madmast wo hawaye,
love birds ki kahani ankhon se aankh ladna,
back bench ke ishare ki parking me milna,
bekhauf zindgi thi or dil bhi tha awara
chota sa ashiyana college tha hamara

exams ki taiyari,or sari raat jagna
texting me unit ke optinal topic discuss karna,
fir bhi  hall me "salo" se ye kehna
bhai kuch padh k aaya h to plz dikha na
ab yaad me basa hai Jo gurur tha hamara
chota sa ashiyana college tha hmara