Friday 20 December 2013

जीवन और मृत्यु

ना वक्त मौत का है तेरी, न साँसों की डोरी का,
क्षण भर मे रंग उजड जाता है, जीवन की रंगोली का,
चमक दमक ये दुनिया की, तेरे तन की मोहताज सिरफ,
कब साथ छोड दम निकल पडे, ये खेल है आँख मिचौली का,

कल जहाँ खुशी से मिली नजर, है खडी वहाँ वीरानी है,
बच सके काल के पंजों से, बचपन न कोइ जवानी है,
कब छीन ले निर्मम हाँथों से, वो कण कण तेरी श्वासों का,
ये लिखकर सबके जीवन मे, खुद नियती हुइ रुआसी है,

हाँथों में सिमटे सब सपने, कब खोल के मुठ्ठी बिखर पडे,
सतह मखमली सुँकू भरी, कब त्याग के तुझको उधड पडे,
जीवन भर का वादा करके, कई हाँथ अमूमन फिसल गये,
कुछ अरमा पूरे करने को कई जन जीने को मचल पडे,

क्या सोचा है, क्या हो जाये, न बस मे तेरे मेरे है,
हर किरण हटा के बिखर पडे, जाने कब कोप अंधेरे है,
अभी खडा तू जीवित है, अगले पल का अनुमान नही,
आँखो में फिर भी आशा के, तुने कितने रंग बिखेरे है.

Friday 18 October 2013

भागती सी जिन्दगी




भागती सडक पे है, भागती सी जिन्दगी,
सुन्न सोई रात मे, जागती सी जिन्दगी,
तम मे आपने साये को, देखने की आस मे,
रोशनी को छिद्र से, निहारती सी जिन्दगी,

बदहवास चल रहा है, कौन तेरी ओर पे,
खुशी किसे बताएगा, ना कोई तेरे छोर पे,
ये कैसा जश्न मन रहा, जीत है हार है,
कतरा कतरा मौत को, माँगती सी जिन्दगी,

खुद की ही आवाज आज, शोर मे है घुट गई,
चमक जो सारी थी कभी, वो खुद मे ही सिमट गई,
ढूढने को भीड मे. खो रहा वजूद जो,
हर तरह से चीखती, पुकारती सी जिन्दगी,

उन पुराने ख्ववों पर, धूल सी है जम गई,
हसीन कई कहानियाँ भी, याद से निकल गई,
छिनते  अपने अक्स को, ढूढती बटोरती,
हर रोज अपनी शक्ल को, संवारती सी जिन्दगी,

उड रहा है आदमी, जमीन पर है पग कहाँ,
खो के अपने आप को भी रूक रहा ना थम रहा,
उडान एसी भर रहा की आँख मे भी धूल है,
आँधी सी तेज चाल को थामती सी जिन्दगी|

Tuesday 1 October 2013

फैसला



क्या सही है, क्या गलत, मे आज क्यों तनाव है,
खुद के फैसलों पे लगा क्यों ये प्रश्न दाग है,
भाग रही जिन्दगी वक्त से भी तेज है,
उड रहे है पग मेरे, इन मे भी तो वेग है,
जरूर ऐसी दौड मे, खुशी भी है, विराग भी,
इस कशमकश से लड रहा दिल भी है दिमाग भी,
मुमकिन है मेरा हर सही, गलत हजार को लगे,
सच्चाईयों की बूँद भी, फरेब बन के जा गिरे,
जो भीड मे घिसट रहे, पिछड गये, निरर्थ है,
जिस चीज मे खुशी मेरी, वो बस उन्ही का दर्द है,
मेरे हर बढे कदम उन्हे कलंक से लगे,
हर लफ्ज मेरे हक भरे, उन्हे, उज्ड्ड से लगे,
क्यो ना जगू, मैं ना बढू, जो मुझमे भव्य तेज है,
मेरी जीत से किसी को, हो रहा क्या द्वेश है,
हुआ नही जो आज तक, वो आगे भी घटे नही,
धारक को ऐसी सोच के, ये जन्म शोभता नही,
आकर दिखाओं आग को, जो है बुलँद हौसला,
औरों के पैर खीच कर होता नही हर फैसला....