Friday 28 February 2014

उथल पुथल

कुछ राहें हम चुन लेते हैं,
कुछ राह हमें चुन लेती हैं,
कुछ दिन से हम ले लेते हैं,
कुछ रात हमें दे देती हैं,
जब तक रस्ते पहचान सके, 
मंजिल धुंधला सी जाती हैं,
हर बार मिटा कर ख्वाबों को,
एक नया ख्वाब दे जाती हैं,
उथल पुथल ये भीतर की,
स्थिरता को है खोज रही,
कोशिश मन को फुसलाने की,
एक रोज नहीं हर रोज रही,
जिद मे कुछ कर जाने की,
खोये कल की झुंझलाहट मे,
कुछ रातें हम जग लेते हैं,
कुछ नींद छीन ले जाती हैं,

हाथ छुडा जब जब कल से,
खुद को भविष्य मे खीचा हैं,
तब तब ख्वाबों के खतिर मैनें,
खुद से लडना सीखा हैं,
कोमल रिश्तों की बेडी जब,
पैरों मे कसती जाती है,
तब तोड के दृढ़ता से उनको,
हर कदम बढाना सीखा है,
हार जीत की दुनिया मे,
और खेल मे पाने खोने के,
कुछ दर्द मे हम रो लेते है,
कुछ अश्क जीत दे जाती है

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