Friday 11 December 2015

एसी भी दीवाली थी

एक एसी भी दीवाली थी,
जहाँ धन दौलत की बाढ न थी,
जर जर से तन ठकने को
छप्पर तक की आड़ न थी,
पर फिर भी शकलें हँसती थी,
और ँखें दीप जालाती थी,
ऊँचे महलों की धूल तले,
एक एसी भी दीवाली थी,
एक एसी भी दीवाली थी
जब घर अपने कुछ पास न था,
मौन फटाके लगते थे,
और मीठे मे वो स्वाद न था,
फिर भी दीपों की चादर थी,
जो उस घर तक भी जाती थी,
इस बात से मन को बहलाती
एसी भी दीवाली थी,
एसी भी दीवाली थी,
जब सरहद पर कोई भूखा था,
कोई छोड नवेली को घर मे,
कोइ पोंछ के आँसू लौटा था,
फिर भी आँखों मे ख्वाब भरें,
यादों की रंगोली डाली थी,
दूर कहीं सूनसानों मे
एसी भी दीवाली थी,
एसी भी दीवाली थी,
जिसमें कोई दीप न था,
अपनों का साया छूट गया,
और जीवन मे कुछ ठीक न था,
एक दूसरे को थामें,
जीवन की डोर सम्हाली थी,
सब खुशियों को मौन किए
एसी भी दीवाली थी
~आरोही

No comments:

Post a Comment