Tuesday 26 July 2016

आग

दहक दहक दहक रही सीने मे ये आग जो,
प्रचंड हो,अखन्ड हो,आँधियों के ज़ोर मे,
अलाव बनके यूँ उठे,सभी नज़ारे चौंध हो,
रात मे तमस भरी,और दिव्य श्वेत भोर मे,

संघर्ष की ये आग है,जीत मे विलीन कर,
गिरो,उठो,थमो मगर ये आग ना निराश हो,
ठोकरों से राह की,इसे अबीर लाल कर,
चिंगारियों से घात की,महा विशाल यज्ञ हो,

बुझ गई जो आग तो,तु आज मृत्य हो गया,
माँस और हाड़ का,जिस्म ले भटक रहा,
जला पुनः तु आग को प्राण अपने फूक के,
ना खुद को जीत पायेगा,जो आज यूँ ही खो गया,
जो आज यूँ ही खो गया।

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