Monday 15 August 2016

दर्द

है दर्द का मंज़र आँखों मे,कोई खंजर दिल मे गया उतर,
छोटा सा घरौंदा जीवन का,इन आँखों मे है तितर बितर,

अश्कों मे मेरे ख्वाबों के ,टूटे वो टुकड़े बहते हैं,
क्या हाल हुआ अरमानो का,हम किस्सों मे अब कहते है,

उठने सोने के अंतर मे ,अब सब ठहरा सा लगता है,
खुशियों के इस दरवाज़े पर,अब गम का पहरा लगता है,

घड़ि की टिक टिक कानों से,भीतर तक घर कर जाती है,
उनके आने का रस्ता जब,ये आँखें तकती जाती है,

मुस्कानो की स्याही से ,कुछ उजले पन्ने लिख्खे थे,
दबे हुए उन पन्नो मे,कुछ फूल प्यार के रख्खे थे,

उड़ गये माह दर साल कइ,घोंटे भी गये जज़्बात कइ,
कैसे बताये अब क्या है हाल,मुरझे वो फूल हैं सुर्ख लाल,

वो दर्द मे लिपटे धुंदले पन्ने,अब रोज़ सिरहाने होते हैं,
उनमे ज़िन्दा कुछ यदों को,हम अश्क मे भरकर सोते हैं,


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