Wednesday 22 March 2017

क़लम

हाँ मै कलम हूँ ,स्वतंतृ,स्वछन्द कलम,
किसी के लिये दर्द ,किसी के लिये दुआ,
किसी के लिये अश्क, किसी के लिये सुकून,
फिर भी एक निस्वार्थ कलम.....

तुमने उठाया मुझे लिखने को,सच, झूठ, कल्पनाये,
बिन जाने मेरी मंशा मेरी व्यथाये ..
मै क्या लिखना चाहती हूँ,
क्योंकी मै तो हूँ एक र्निजीव कलम,

देश के बड़े फैसले किये मुझसे,
लोगों के शब्दों का सत्यार्पन किया,
मेरे शब्द ही कोइ सुन ना सका....
क्येंकी मैै तो हूँ एक मूक कलम....

तुम लिखते रहे बेरहम, बेझिझक मेरी आत्मा निचोड़ के,
किसी ने दंगे किसी ने मौत किसी ने कृांति लिखी मुझसे,
लिखते रहे निरन्तर लहु का कतरा कतरा,
क्योंकी मै तो हूँ बेखौफ कलम....

~आरोही

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