Wednesday 22 March 2017

नशा


नशा है नशा है,नशा ही नशा है,
हाँ माना है मैंने ,ये देता मज़ा है,

यक़ीनन है फ़ुरसत ,ज़माने की ज़िद से,
है देता जुनूँ भी, इरादों की हद से,
जो आँखों में उतरे ,जुदा सारे ग़म है,
है कमज़ोर राते, जवाँ सिर्फ़ हम हैं,

बेख़ौफ़ है ये,न परवाह किसी की,
बेबाकियों को, ये देता रजा़ है,
न लफ़्ज़ों पे क़ाबू ,न मन में कलह है,
उधड़े दिलों पे, मरहम की तरह है,

हैं बेदर्द आँहें ,न ज़ख़्मों में जाँ है,
है मुमकिन ख़ुशी अब, ख़याली जहाँ है,
जो अँधियारे दिन हैं,तो रौशन शमाँ है,
नशा है नशा है, नशा ही नशा है,

मगर जो न सोचे, ये अनजान मन है,
जो डलका नशा तो, बचे ख़ाक हम है,
जब आँखें खुलेंगी, वही हाल होगा,
जो खोजेगा कल को, तो बेहाल होगा,

था टूटा जहाँ पर, वहीं पर है बिखरा,
और खो जो चुका है,वो लम्हों का टुकड़ा,
फिर गहरे से होंगे , वो ज़ख़्मों के मंज़र,
वो धुँधली सी चोटें ,और दर्दों के ख़ंजर,

बेहोशी में कुछ पल की,सच को छुपा दे,
और ख़ुद तक पहुँचने की , राहें मिटा दे,
जो भिद जाये भीतर,तो बहका दे तुझको,
ज़रा सी हवा दी , तो झुलसा दे तुझको,

जो तुझको जला दे,ये कैसा मज़ा है,
नशा है नशा है, नशा ही नशा है,

~आरोही

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