Wednesday 28 March 2018

दुर्गा

स्वागत मे तेरे ,लोगों ने फिर दरवाज़ा खोला है,
एक देवी कोख मे मार गिरा,तेरा जयकारा बोला है,
पर तेरे भी बस मे क्या है,तू भी तो आख़िर भोली है,
तेरे भी गिन कर कुछ ही दिन,तेरी भी छुट्टी होनी है,
जहाँ इन्सानों की क़दर नहीं ,वहाँ इश्वर का भी मान कहाँ,
जो जीवित को पत्थर मान लिया ,फिर पत्थर मे भगवान कहाँ,
ये दो पल्लो के चहरे है,कुछ बातें कुछ है काम किया,
हर एक फूल पर माँग रखी ,भक्ती का उसको नाम दिया,
बड़ी बड़ी मूरत रख कर,नौ दिन तेरा श्रंगार करे,
थाली मे सिक्के भर भर कर, ये तेरा भी व्यापार करे,
जब हर लड़की मे दुर्गा है,तो तुझसे इतना लाड़ क्यों है,
ये प्यार नहीं डर है शायद,तू शक्ती की पहचान जो है,
तू केवल एक एहसास ही है,फिर भी तुझसे घबराते हैं,
और पूर्ण रूप एक ताकत को,निर्भय हो मार गिराते हैं,
गर सच मे श्रद्धा भाव है तू,तो बाक़ी शक्लें बंजर क्यूँ ,
जब हर औरत मे तू ही है,तो आँचल पर उनके,ख़ंजर क्यूँ,
पता नहीं तू है कि नहीं,और ना ही हो तो अच्छा है,
ये कोइ नहीं ये इन्सान है,थोड़ा लगाम का कच्चा है,
हवस को अपनी टपकाने,मर्ज़ी की इसे दरकार नहीं,

कभी बहक गया भोला कोइ,लग जाये ना तुझपर दाग कहीं,

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