Friday 18 October 2013

भागती सी जिन्दगी




भागती सडक पे है, भागती सी जिन्दगी,
सुन्न सोई रात मे, जागती सी जिन्दगी,
तम मे आपने साये को, देखने की आस मे,
रोशनी को छिद्र से, निहारती सी जिन्दगी,

बदहवास चल रहा है, कौन तेरी ओर पे,
खुशी किसे बताएगा, ना कोई तेरे छोर पे,
ये कैसा जश्न मन रहा, जीत है हार है,
कतरा कतरा मौत को, माँगती सी जिन्दगी,

खुद की ही आवाज आज, शोर मे है घुट गई,
चमक जो सारी थी कभी, वो खुद मे ही सिमट गई,
ढूढने को भीड मे. खो रहा वजूद जो,
हर तरह से चीखती, पुकारती सी जिन्दगी,

उन पुराने ख्ववों पर, धूल सी है जम गई,
हसीन कई कहानियाँ भी, याद से निकल गई,
छिनते  अपने अक्स को, ढूढती बटोरती,
हर रोज अपनी शक्ल को, संवारती सी जिन्दगी,

उड रहा है आदमी, जमीन पर है पग कहाँ,
खो के अपने आप को भी रूक रहा ना थम रहा,
उडान एसी भर रहा की आँख मे भी धूल है,
आँधी सी तेज चाल को थामती सी जिन्दगी|

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