Friday 20 December 2013

जीवन और मृत्यु

ना वक्त मौत का है तेरी, न साँसों की डोरी का,
क्षण भर मे रंग उजड जाता है, जीवन की रंगोली का,
चमक दमक ये दुनिया की, तेरे तन की मोहताज सिरफ,
कब साथ छोड दम निकल पडे, ये खेल है आँख मिचौली का,

कल जहाँ खुशी से मिली नजर, है खडी वहाँ वीरानी है,
बच सके काल के पंजों से, बचपन न कोइ जवानी है,
कब छीन ले निर्मम हाँथों से, वो कण कण तेरी श्वासों का,
ये लिखकर सबके जीवन मे, खुद नियती हुइ रुआसी है,

हाँथों में सिमटे सब सपने, कब खोल के मुठ्ठी बिखर पडे,
सतह मखमली सुँकू भरी, कब त्याग के तुझको उधड पडे,
जीवन भर का वादा करके, कई हाँथ अमूमन फिसल गये,
कुछ अरमा पूरे करने को कई जन जीने को मचल पडे,

क्या सोचा है, क्या हो जाये, न बस मे तेरे मेरे है,
हर किरण हटा के बिखर पडे, जाने कब कोप अंधेरे है,
अभी खडा तू जीवित है, अगले पल का अनुमान नही,
आँखो में फिर भी आशा के, तुने कितने रंग बिखेरे है.

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