एक अकेला तू ही है, और डगर बस तेरी है,
कही पे चुभती धूप है तो, कही पे छाव घनेरी है,
जब सब कुछ बस मे तेरे है, फिर पग क्यो तेरे ठहरे है,
हर राह खुली उस पार है पर, इस ओर नजर पे पहरे है,
तू धूल पलक से परे हटा, और खुद को फिर पहचान जरा,
एक ताल ठोक तू धरती पे, और फिर खुद को ललकार जरा,
झगझोर के अपने तन मन को, जिन्दा है तू बतला खुद को,
मोहताज नही तू औरों का, सम्पूर्ण है तू बतला खुद को,
जिस दिन जीवन के शीशें मे, तू आँख मिलायेगा खुद से,
बस शक्ल वहाँ तेरी होगी, और प्रश्न उठायेगा खुद से,
ना कोई वहाँ साथी होगा, ना प्रेम बद्ध माला होगी,
ना रिश्तों का साया होगा, और ना समाज धारा होगी,
हर एक फैसले का तेरे बस तू ही जिम्मदार है सुन,
तू तन्हा अपनी राह पे है, जी चाहे जितने बन्धन बुन,
हर हार जीत का ऋण तुझको, बस खुद को चुकता करना है,
हर सही गलत बस तेरा है, और तुझको ही तय करना है,
रिश्ते बस यहाँ छलावें है,एक अनदेखी पाबंदी है,
ख्वाब दिखा कर बडे बडे, ये करते घेरा बंदी है,
हर बंधन तेरा तोड दे तू, फिर देख जो ख्वाब सुनहरे है,
इस ओर भी राहें है मुमकिन, और रोशन यहाँ सबेरे है|
जब सब कुछ बस मे तेरे है, फिर पग क्यो तेरे ठहरे है,
हर राह खुली उस पार है पर, इस ओर नजर पे पहरे है,
तू धूल पलक से परे हटा, और खुद को फिर पहचान जरा,
एक ताल ठोक तू धरती पे, और फिर खुद को ललकार जरा,
झगझोर के अपने तन मन को, जिन्दा है तू बतला खुद को,
मोहताज नही तू औरों का, सम्पूर्ण है तू बतला खुद को,
जिस दिन जीवन के शीशें मे, तू आँख मिलायेगा खुद से,
बस शक्ल वहाँ तेरी होगी, और प्रश्न उठायेगा खुद से,
ना कोई वहाँ साथी होगा, ना प्रेम बद्ध माला होगी,
ना रिश्तों का साया होगा, और ना समाज धारा होगी,
हर एक फैसले का तेरे बस तू ही जिम्मदार है सुन,
तू तन्हा अपनी राह पे है, जी चाहे जितने बन्धन बुन,
हर हार जीत का ऋण तुझको, बस खुद को चुकता करना है,
हर सही गलत बस तेरा है, और तुझको ही तय करना है,
रिश्ते बस यहाँ छलावें है,एक अनदेखी पाबंदी है,
ख्वाब दिखा कर बडे बडे, ये करते घेरा बंदी है,
हर बंधन तेरा तोड दे तू, फिर देख जो ख्वाब सुनहरे है,
इस ओर भी राहें है मुमकिन, और रोशन यहाँ सबेरे है|
oh my ....didnt come to my mind that you still blog here ....
ReplyDeleteyes i still post
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